एक दुआ: तू चाहे पर तू आ न सके.. 🤥 😶

यूँ गए ज़िन्दगी  से हमारी कि वो
मुस्कराके  भी हम मुस्करा ना सके
उनकी आँखों  से देखे थे सपने जो कभी
पलके तो झुकी पर छुपा न सके

उनकी छांव में हम उडे  थे बहुत
की गिरने  से खुद को बचा  न सके
तेरी यादों ने हर पल  मारा है हमे
पर यादो  को तेरी मिटा न सके

तुझमे खोया था खुद को यूँ
कि वापस खुद को पा न सके
चाहता था इतनी शिद्दत से
कि कैसे भी दुरी  आ ना सके

रखा था दिल में संभाले  तुझे
कि कोई भी तुझे चुरा न सके
पकड़ा था दिल को हाथो से
तू चाहे तो भी छुड़ा न सके

तब रुक जाते तो क्या बात थी
अब तो दिल की दुआ है यही
हो वक़्त बहुत जब मै जाऊ
तू चाहे पर तू आ न सके

हाँ, मैं वही हूँ

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Author

Btech करके टेक्नोलॉजी से जुड़ी काकुल श्रीवास्तव ने राज्य स्तर के डिबेट में भी भाग लिया है। नृत्य,गीत-संगीत और चित्रकारी में रुचि रखने वाली काकुल को नॉवेल पढ़ना बेहद पसंद है। बचपन से ही साहित्य में रुचि के कारण इन्हें लिखने का शौक हो गया। जीवन के नए पड़ाव में प्रवेश करने वाली काकुल को उनका लेखन प्रेरणा देता है जिसे वो शब्दों के माध्यम से लोगों तक पहुँचाती हैं।

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