हां, भूल तो गई हूं.. 😓 🙁
फिर भी जाने कहां से याद आ जाते हो तुम?
जब भी किसी पेड़ पर कोई नई कली खिलती है, मैं बेचैन हो जाती हूं तुम्हें बताने को।
जब जब उदास होता है दिल मचल जाया करता है अक्सर तुम्हारे पास आने को।
गीले बालों को लेकर जब भी सवंरने जाती हूं आईने के सामने ,
याद करती हूं। अक्सर उन लम्हों में तेरे मुस्कुराने को।
खुद को संवार कर तेरी आंखों में देखना अच्छा लगता था मुझे,
बहुत याद करती हूं। उन लम्हों में मैं तेरे बेचैन हो जाने को ।
हाँ …. भूल तो गई हूं।
फिर भी जाने कहां से याद आ जाते हो तुम,
लिखने लगती हूं अक्सर यह बात खुद को ही समझाने को।