अच्छी लगती हूँ मैं.. पर कब तक 🙂 🙃

चुप हूँ जब तक तब तक, सबको अच्छी लगती हूँ मैं
हाँ-हाँ करती रहूं सबकी बात पे, तो बहुत अच्छी बहु हूँ मैं

कुछ भी कह सकती हो मुझसे, हमसफ़र ही नहीं दोस्त भी हूँ मैं
कह उतना ही सकती हो, जितना सुनना पसंद करूँ मैं

मायका नहीं है ये तुम्हारा, ये वो घर है जिसका मालिक हूँ मैं
कुछ भी अपने मन से नहीं कर सकती,
क्योंकि पराये घर से आयी हूँ मैं

हर काम के लिए प्लीज कहना पड़ता है,
क्योंकि हक़ नहीं जता सकती मैं
गलती हो या न हो फिर भी माफ़ी मांगनी पड़ती है,
क्योंकि बेटी नहीं बहु हूँ मैं

पत्नी हूँ अर्द्धांगनी हूँ लेकिन तभी तक
जब तक उनकी हर बात सुनु मैं
मेरे सब कुछ हैं वो लेकिन उनके अहम् के आगे
कुछ भी नहीं हूँ मैं

चुप रहो,सबके मन की करो क्योंकि
माँ और पापा के अलावा किसी की अपनी नहीं हूँ मैं
चुप हूँ जब तक तब तक, सबको अच्छी लगती हूँ मैं

कहे अनकहे - Kahe Ankahe

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Author

एक MNC में Software Developer के पद पर काम कर रहीं स्वाति अग्रवाल को साहित्य का बेहद शौक है। अपने एहसासों को पन्नों पर उतरना उन्हें बहुत पसंद है। उनका मानना है कि शब्द हमें बिना बोले एक दूसरे से जोड़ते हैं तो क्यों ना इन्हें और लोगों के पास भी पँहुचाया जाए। लिखने के साथ-साथ शब्दों को अपना स्वर देना भी स्वाति को बेहद पसंद है। कविताओं को पढ़ने का उनका अंदाज़ ही उन्हें और उम्दा लिखने के लिये प्रेरित करता है,

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