अच्छी लगती हूँ मैं.. पर कब तक 🙂 🙃
चुप हूँ जब तक तब तक, सबको अच्छी लगती हूँ मैं
हाँ-हाँ करती रहूं सबकी बात पे, तो बहुत अच्छी बहु हूँ मैं
कुछ भी कह सकती हो मुझसे, हमसफ़र ही नहीं दोस्त भी हूँ मैं
कह उतना ही सकती हो, जितना सुनना पसंद करूँ मैं
मायका नहीं है ये तुम्हारा, ये वो घर है जिसका मालिक हूँ मैं
कुछ भी अपने मन से नहीं कर सकती,
क्योंकि पराये घर से आयी हूँ मैं
हर काम के लिए प्लीज कहना पड़ता है,
क्योंकि हक़ नहीं जता सकती मैं
गलती हो या न हो फिर भी माफ़ी मांगनी पड़ती है,
क्योंकि बेटी नहीं बहु हूँ मैं
पत्नी हूँ अर्द्धांगनी हूँ लेकिन तभी तक
जब तक उनकी हर बात सुनु मैं
मेरे सब कुछ हैं वो लेकिन उनके अहम् के आगे
कुछ भी नहीं हूँ मैं
चुप रहो,सबके मन की करो क्योंकि
माँ और पापा के अलावा किसी की अपनी नहीं हूँ मैं
चुप हूँ जब तक तब तक, सबको अच्छी लगती हूँ मैं