समाज का जहर…..
समाज का न्याय 😡 🤷

बड़े लोग बड़े स्वरों में मोमबत्तियां उठाने जा रहे आज एक बार फिर।

पर क्यों?

क्योंकि आज फिर किसी स्त्री की अस्मिता को तार-तार कर दिया गया,

पर कोई पूँछे इन लोगों से…..ये जो बातों बातों में स्त्रीसूचक गालियाँ  बोल देते हैं,
क्या वो स्त्री के सम्मान के साथ खिलवाड़ नहीं?

अजी छोड़िए। हम कहेंगे तो आपका जवाब होगा उसका ये मतलब नहीं होता ,वो अंग्रेज़ी के स्लैंग की तरह है आदि आदि,

पर मुझे लगता है ये विकृति  हर इंसान के दिमाग में है…
बस जिसकी उभर आती है …वो वहशी  बन जाता है।

ये युद्ध मानसिकता  का है….आसान नहीं होगा क्योंकि समाज जो केवल ऐसी घटनाएं होने पर जागता है, वो ही इन कुकृत्यों का जन्मदाता भी है।

एक औरत को बिना गलती के कटघरे में खड़ा करने वाला समाज, उसकी जाति देकर उसके लिये न्याय माँगने वाला समाज, उसे परिहास का विषय समझने वाला समाज और उसको इस्तेमाल करने की वस्तु समझने वाला भी समाज ही है,

तो वो सभी जो आज न्याय माँग रहे हैं, उनसे पूछना है कि किससे माँग रहे हैं न्याय? किस हक से मांग रहे हैं न्याय?

बंद करिए ठेकेदार बनना… आप जो स्त्री सम्मान का मतलब ही नहीं समझते, राजनैतिक विरोध के चलते बस तख्ती और मोमबत्ती उठा लेते हैं, आप जो अपनी ही सहकर्मी के लिये घटिया सोंच रखते हैं,आप जिनके लिये अश्लीलता और वैचारिक खुलेपन में कोई अंतर नहीं, आप मॉर्डन होने का नाम पर जो खुलेआम सभाओं में बैठकर ऐसे मुद्दों पर ठहाके लगाते हैं, आप जो हर बात को मजाक या सेंस ऑफ ह्यूमर कहकर टाल जाते हैं,आप जो राह चलती लड़की को छेड़ने वालों पर चुप रह जाते हैं।

आप न्याय दे ही नहीं सकते क्योंकि आप सब कटघरे में हैं,और दुःखद ये है कि इन लोगों में हर वर्ग आता है,
स्त्री,पुरुष सभी इस भीड़ का हिस्सा हैं।

न्याय के लिये मोमबत्ती उठाये ये लोग नारों में किसी की सिसकन का तमाशा बना देते हैं,

ये क्या न्याय देंगे? चौराहों पर लटकाने से डर आ भी जाये पर सोंच में घुला जहर तो जहर को ही जन्म देगा ना?

सोंचना ही है तो इस जहर को कैसे खत्म करें ये सोंचे? न्याय अपने आप हो जाएगा।

आखिरकार “कुसंस्कार आपके …..भुगतने वाला कोई और” कोई क्यों भुगते? और कब तक?

अनुलेख: एक सामान्य लड़की की तरह न्याय की अपेक्षा मेरी भी यही है कि ऐसे दरिन्दों को तिल-तिल कर मारना चाहिये, पर क्या ऐसा समाज नहीं बन सकता जो इस सोंच को ही ना उपजने दे। ये मेरे विचार हैं ,आपको मानने की बाध्यता नहीं है, पर एक बार सोंचियेगा जरूर।

#व्यथित #लेखनी

कहे अनकहे - Kahe Ankahe

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Author

गरिमा शुक्ला "लेखनी" इसकी सक्रिय लेखिका होने के साथ इसका Talent management भी manage करती हैं। पेशे से Engineer, गरिमा की साहित्य में काफी रुचि है,कला क्षेत्र से उनका जुड़ाव उन्हें लेखन की ओर ले गया और उन्होंने ब्लॉग के रूप में अपने भावों को प्रस्तुत करने तथा इसमें और लोगों को भी जोड़ने का प्रयास किया|

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