बचपन की हर बात निराली.. 😍 😘

बचपन  है फूलों की डाली
कितना सुन्दर प्यारा बचपन
जितना सुन्दर  फूलों का मन
टिमटिम-टिमटिम करता है ये
तारों जैसा रौशन  है ये
कैसे कहूं मैं इनकी कहानी
आसमा  से पूछें उनकी जुबानी
हर बाग के कोमल  फूल के जैसा
मन में बसे विश्वास के जैसा
गिर-गिर कर है चलना  सीखा
तभी तो हमने बढ़ना सीखा
चाँद  को हमने मामा कहा है
माँ-बाप को हमने भगवान्  कहा है
हर किसी को खुश रखना है
सपनो को भी पूरा करना है
मन की गहराई  को हमने समझा
तभी तो सूरज को प्रकाश  है समझा
बड़ों को हमको को जीना सिखाया
ज़िन्दगी का असली अर्थ है बताया
बचपन की हर बात निराली
बचपन है फूलों की डाली 

हाँ, मैं वही हूँ

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Author

एक MNC में Software Developer के पद पर काम कर रहीं स्वाति अग्रवाल को साहित्य का बेहद शौक है। अपने एहसासों को पन्नों पर उतरना उन्हें बहुत पसंद है। उनका मानना है कि शब्द हमें बिना बोले एक दूसरे से जोड़ते हैं तो क्यों ना इन्हें और लोगों के पास भी पँहुचाया जाए। लिखने के साथ-साथ शब्दों को अपना स्वर देना भी स्वाति को बेहद पसंद है। कविताओं को पढ़ने का उनका अंदाज़ ही उन्हें और उम्दा लिखने के लिये प्रेरित करता है,

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