एक लड़का है अंजाना सा,
थोड़ा अल्हड़ सा मस्ताना सा।
बात-बात में वो रुठे हैं, मुझे लगे थोड़ा दीवाना सा।
अक्सर करता है बातें , बड़ी शौखी से ।
तो लगे मुझे वो, मौसम कोई सुहाना सा।
लिखता है। हर रोज एक नई गजल मोहब्बत पर,
सुनाने बैठता है फिर , जैसे शमां पर मरे कोई परवाना सा ।
वो जो लडका है। अंजाना सा, थोड़ा आशिक है दीवाना सा!