मैं तलाश में हूं जिंदगी की…

आँख मिचौली करती है।
कभी ना रूबरू मिलती है।

मैं भागती हूं रोज इसके पीछे
यह सौ कदम आगे चलती है।

कभी छांव तो कभी धूप सी जलती है।
हजार तमन्नाएं मेरी इसे देखकर मचलती हैं ।

यह जो जिंदगी है,
कभी पानी सी कभी रेत सी हाथों से फिसलती है।

कभी छोड़ देती हाथ तो,
कभी बनकर साया साथ मेरे चलती है।

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Author

अनिता रोहल मुजफ्फरनगर उत्तर प्रदेश की रहने वाली हैं।उनके पति और बेटे में ही उनकी पूरी दुनिया बसती है। किताबें, कहानियां पढ़ने की शौकीन अनिता को धीरे-धीरे कविता,कहानियाँ लिखने में भी रुचि हो गयी। आज अपने इसी शौक के चलते वो एक उभरती हुई लेखिका हैं।

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[…] दूर लंबा एक सफर तय करना था। सभी ट्रेन पकड़ने के लिए […]

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