शायद तेरी कमी रह गई.. 😓 🙁

सब साथी  मेरे साथ यहां..
है वक्त नही मेरे पास यहाँ..
पर याद  तेरी तनहा कर गई..
शायद तेरी कमी रह गई ||

तुझे याद  नहीं कोई भी पल..
या फुर्सत नही एक पल  की..
पर सब में मझे तू याद है..
शायद तेरी कमी रह गई ||

तुझे मिल  गए मेरे जैसे
मेरे पास नहीं तुझ  सा एक भी
जितने सब मेरे हमदम,
शायद तेरी कमी  रह गई ||

तुम डूब  गए रिश्तो में यूँ..
या उलझे हर बीते किस्सों  मे यूँ ..
हम समझ  गए मतलब सबका..
शायद तेरी कमी रह गई ||

मै न जानू  क्यों तु बनता है..
जबकि यादी से में घिरी  रहती हूँ..
मेरी बातो  में तु बयां होता है ..
शायद तेरी कमी रह गई ||

हाँ, मैं वही हूँ

पसंद आया? शेयर करे..
Author

Btech करके टेक्नोलॉजी से जुड़ी काकुल श्रीवास्तव ने राज्य स्तर के डिबेट में भी भाग लिया है। नृत्य,गीत-संगीत और चित्रकारी में रुचि रखने वाली काकुल को नॉवेल पढ़ना बेहद पसंद है। बचपन से ही साहित्य में रुचि के कारण इन्हें लिखने का शौक हो गया। जीवन के नए पड़ाव में प्रवेश करने वाली काकुल को उनका लेखन प्रेरणा देता है जिसे वो शब्दों के माध्यम से लोगों तक पहुँचाती हैं।

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments
0
Would love your thoughts, please comment.x
()
x