आज सब कुछ भुलाये बैठी हूँ.. 👩 🙂
पास चंद यादें हैं
जो खिड़की पर सजाये बैठी हूँ
कि कोई तारा टूटे मेरे लिए
आज मै नजरे बिछाये बैठी हूँ
यहाँ फिर तनहा अकेली सी
एक भूली बिसरी पहेली सी
जहाँ आह भरने का दम नहीं एक पल
आज सब कुछ भुलाये बैठी हूँ
तू गुजरेगा शायद उसी मोड़ से
बैचेन सा मेरा दिल कहने लगा
बड़ी मुश्किल से छोड़ा शहर वो तेरा
तेरी यादों का दरिया फिर बहने लगा
हँस रहा है ये जहाँ मुझे देखकर
कि खुद का तमाशा बनाये बैठी हूँ
हम गुजरे जब तेरी गली से
तेरे अलविदा का इंतजार किया
सोई न थी उस रात को
पल पल तेरा दीदार किया
बयान ना कर पायी दर्द – ऐ – दिल अपना
आज जख्म छुपाये बैठी हूँ