बीस साल बाद ….👩 👨 पार्ट – 2
मई-जून की तपती गर्मी! ए सी मैं भी दम घुट रहा था नेहा कोच से निकलकर अपनी पसंदीदा जगह आ बैठी थी। ट्रेन की खुली जगह से दौड़ती चमकती रात को देखना उसे अच्छा लग रहा था।
देखते देखते शायद 2 घंटे से भी ज्यादा गुजर चुके थे। वहां बैठे हुए उसे, अचानक एक आहट महसूस हुई। घबरा कर देखा तो वह पीछे खड़ा था। यहां क्यों बैठी है? तेरी यह ऐसी आदतें अब तक गई नहीं। कई सवाल वो बिना वजह पूछे जा रहा था।
पलटकर देखा उसे नेहा ने बस चेहरा थोड़ा भारी लग रहा था। बिल्कुल वैसा ही दिख रहा था जैसा था । ‘मैं भी बैठ जाऊं।’ यह पूछने से पहले बैठ चुका था वह , और बस फिर खामोश…..
इतनी खामोशी की पूरी रात ही गुजर गई ना उसने कुछ कहा ना नेहा ने कुछ कहा। हां, सुबह उसकी मम्मी की घूरती नजरे जरूर महसूस हो रही थी। तभी पापा – पापा की आवाज सुनाई दी। उसकी बेटी थी।
बहुत सुंदर कोई सत्रह – अट्ठारह साल की होगी। अगली रात भी कोई बात नहीं हुई। पहुंच गए थे। सब अपनी अपनी मंजिल पर फिर 4 दिन function में कैसे गुजर गए। पता ही नहीं चला।
नेहा …...उसे तो घूमने का शौक था। वह तो वहां जाकर घूमने का अपना जगह – जगह का शौक पूरा करने में लग गई थी। फिर पांचवा दिन था सब का प्लान था समंदर किनारे जाने का।
नेहा का तो सपना था और मस्ती से जाकर समंदर पर इंजॉय कर रही थी। मगर दो खामोश निगाहें जाने कब से उसे ही देख रही थी जो बार-बार बेचैन कर रही थी।
सब जल्दी थक गए थे। वापस चल दिये थे। तब उसने हल्के से कहा था ……रुको ना! कुछ देर । उसके चेहरे का सूनापन अजीब था। नेहा रूक गई थी
उसके लहजे सुनकर और फिर दोपहर से शाम हो गई। वहीं यूं ही खामोशी से बैठे-बैठे समुंदर की उठती गिरती हुई शौर करती लहरें और लहरों के सिवा वहां दूर-दूर तक खामोशी के सिवा कुछ नहीं था।
नेहा समझ ही नहीं पा रही थी कुछ भी। सूरज ढलने को था। वापस चलें क्या ? पूछा था उससे नेहा ने….
मगर जवाब में शायद खामोश समंदर में तूफान उमड आया था ।
[…] दूसरा पार्ट यहां पढ़े […]