दर्द के बाजार.. 🙆 🙎
दर्द भी सरे बाजार अब बिकने लगें हैं।
जितना गहरा जख्म उतने ही ऊंचे दाम लगने लगे हैं।
दिखती नहीं थी जिनको खामोशियां कभी
सीने से लगाकर हमें वो भी अब सिसकने लगें हैं।
दर्द के बाजार बेरहमियों से सजने लगे हैं।
दर्द भी सरे बाजार अब बिकने लगें हैं।
जितना गहरा जख्म उतने ही ऊंचे दाम लगने लगे हैं।
दिखती नहीं थी जिनको खामोशियां कभी
सीने से लगाकर हमें वो भी अब सिसकने लगें हैं।
दर्द के बाजार बेरहमियों से सजने लगे हैं।
अनिता रोहल मुजफ्फरनगर उत्तर प्रदेश की रहने वाली हैं।उनके पति और बेटे में ही उनकी पूरी दुनिया बसती है। किताबें, कहानियां पढ़ने की शौकीन अनिता को धीरे-धीरे कविता,कहानियाँ लिखने में भी रुचि हो गयी। आज अपने इसी शौक के चलते वो एक उभरती हुई लेखिका हैं।