मुझे भी साथ ले चलो.. 🙂 🙂
जब भी सोचती हूं मैं तुम्हारे बारे में..
अक्सर दूर बहुत दूर चली जाती हूं यादों के गलियारे में।
हर उस छोर तक चली जाती हूं मैं, अक्सर जहां तुम सिर्फ तुम होते थे,
हां, अब नहीं होते हो, मैं भटकती रहती हूं।
उन गलियारों में रातों के अंधेरों में..
दिन के उजालों में ..
जानते हो क्यों ?
क्योंकि मैं आज तक भी जीती हूं .. तुम्हारे ख्यालों में।
चाहती बहुत हूं, मैं भी वापस लौटना वहां से…
मगर लौटने नहीं देती है.. मुझे उलझाने मेरी..
आखिर कब तक उलझी रहूं.. मैं तेरे छोड़े अधूरे सवालों में..
मुझे भी कर दो आजाद..
इन अंधेरों से.. एक बार..
क्या जाएगा तुम्हारा ?
मुझे वहां से वापस लाने में..
दो कोई वजह..
जो बन जाए रोशनी मेरे लिए
इन अंधेरों से वापस आने में
Nice lines
Thank you:)
मुझे भी साथ ले चलो ‘यारा:)