वो इश्क था या क़र्ज.. 😍 😘
जाने वो इश्क था या क़र्ज था कोई,
वो बढ़ता गया हर पल,
मैं कितना भी उतारती गई।
असल क्या था,
ये तो पता ही नहीं चला,
लेकिन उसके ब्याज की किस्तें थी कई कुछ कसमें, कुछ वादे, कुछ नींदें और यादें थी कई, वो बताता रहा और मैं जोड़ती रही ।
कितना अमीर है वो आज भी,यही सोचती रही। फिर जोड़ दिए उसने कुछ और हसीन लम्हें, कुछ मचलते से अहसास और कुछ शामे हसीन,
भला कैसे उतारे पल भर में इतना कर्ज कोई, मैंने नाम कर दी उसके ये सांसें ही अपनी, अब जैसे चाहे अदा करे, अपनी किस्तें वही एक बार भी ना पूछा सितमगर ने,
मेरा क्या क्या बिका है, उसकी इन किस्तों में, वो बस वसूली करता रहा,बनके साहूकार कोई।