एक छोटी सी चिट्ठी 🙂 🙃
सोंच रहीं थी..
एक छोटी सी चिट्ठी लिखूँ.. आज भगवान को,
हे प्रभु! हम पर दया करो और क्षमा करो इंसान को!
इंसानों ने जंगल काटे, जीवों को बहुत सताया है,
धरती की पुकार सुन, आपने ये मंजर दिखलाया है,
जहाँ पूजते थे पेड़ों को, वहां पर जला दिया बागान को।
हे प्रभु!हमसे भूल हुई, हम भूल गए एहसान को,
मिट्टी जिसने इंसानों को भोजन का भंडार दिया,
तीखा,मीठा ,पका व कच्चा सबके स्वादानुसार दिया,
इंसानों ने विष बोकर बंजर कर डाला ,
हरे-भरे मैदान को,
हे प्रभु! हमने मोल ना समझा, भूल गए एहसान को!
जिन जीवों ने इस दुनिया को बेरंग से रंगीन बनाया,
जिन जीवों में इंसानों ने ईश्वर खोज,मानवता को पाया,
इंसानों ने रक्त बहा कर,खुद में जन्म दिया हैवान को,
हे प्रभु! हम शर्मिन्दा हैं ..
जो भूल गए अपने अंदर के इंसान को।
सोंच रहीं थी एक छोटी सी चिट्ठी लिखूँ आज भगवान को…..
तब मन से आवाज ये आयी प्रभु ने शायद राह सुझाई,
तुमको पेड़ लगाने होंगे, तुमको जीव बचाने होंगे,
तुमको धरती की गोदी में फिर से रंग सजाने होंगे,
मानवता को फिर जीवित कर ,
तुमको अपने कर्त्तव्य निभाने होंगे,
तुम मानव हो,
त्यागो अपने ईश्वर बनने के अभिमान को,
सोंच रहीं थी..
एक छोटी सी चिट्ठी लिखूँ आज भगवान को।